कई साल पहले अपने नेताजी कह गए थे कि तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हे आजादी दूँगा। नेताजी तो निकल लिए (नेताजी निकले कि नही निकले, ये अभी भी बहस का विषय है...) तो हम कह रहे थे कि नेताजी तो निकल लिए, लेकिन उनके दिखाए रास्ते पे चलने वाले लोग आज भी बहुत हैं, बहुतायत मे हैं। कम से कम बनारस से लेकर अपने जयपुर और पंजाब के दो चार हजार किलोमीटर तक तो फैले ही हुए हैं। ये खून देते हैं और उसके बदले मे आजादी लेते भी हैं और देते भी हैं। कैसे? अभी परसों की ही बात है। गाजियाबाद मे एक नेताजी का दीवाना मिल गया। बेचारे को एड्स था लेकिन दोस्त की जान जा रही थी। दे दिया अपना खून। और खून के साथ आजादी भी। उसके पहले लखनऊ मे भी नेताजी के कई दीवाने पकड़े गए। खून के बदले मे आजादी बेचते हुए। उससे पहले बनारस मे पकड़े गए और अब जयपुर मे पकड़े गए हैं। बेचारे नेताजी अगर होते या फ़िर अगर कही हैं, तो अपना माथा पीट लेते। सोचते, इसीलिए उन्होंने खून और आजादी का नारा दिया था? अरे नारे का मतलब तो कुछ दूसरा ही था। वो तो अंग्रेजों से ले ली जाने वाली आजादी की बात कर रहे थे, उसी जोश मे आकर उन्होंने ये नारा दिया, और अब इस नारे का क्या हाल हो रहा है। दूसरों को जिंदगी देने वाले डाक्टर भी इसी मे शामिल हो गए हैं। कम्पाउन्डंर भी शामिल हो गए हैं। जिस तरह से खून का ये व्यापार पूरे देश मे फ़ैल रहा है या फ़िर फैला हुआ है, उससे साफ़ नजर आता है कि दूसरों को आजादी देने वाले इन दीवानों के आगे तो अंग्रेज सरकार भी शरमा जाय। खून लेना हो या खून देना हो, दोनों मे बराबर का गोरखधंधा चल रहा है। खून देने वाले भी आजादी पा जाते हैं और खून लेने वाले तो परमानेंट आजादी पा जाते हैं। अपनी पूरी जिंदगी से ही। वैसे आजाद देश मे खूब आजादी बिक रही है, बाँट रही है....कोई रोकने वाला है इस पराधीन आजादी पाने से, लेने से , देने से ?
नोट- ग्रुप फोटो हिंदू सी ली गई है, दक्षिण भारत मे खून बेचने वाला रैकेट पकड़ा गया था....
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