Friday, August 14, 2009
मोहल्ले की सुध नही और देश से प्यार है???
गजब के लोग हैं। उन्हें उत्सव का बहाना चाहिए। और ये शायद जिस तरह की अर्थ व्यवस्था इस वक्त चल रही है, उसी के परिणाम हैं। कि हर चीज मे उत्सव खोजने की आदत सी हो गई है। आज जिसे देखो, वही कहता नजर आ रहा है, मेरा देश....मेरा वतन। मेरी तो आज तक समझ मे ही नही आया की कैसा देश? कैसा वतन? मोहल्ले की सुध नही और चले हैं देश से प्यार करने। पड़ोसी का अता पता नही और बात करते हैं पाकिस्तान की। ख़ुद कभी नौकरी के झंझटों से आजाद नही हो पाए, जो मन चाहा , वो कभी नही कर पाए, बात करते हैं आजादी की। सचमुच गजब के लोग हैं। शायद यही अजीब चीजें बाहर के लोगों को भारत की तरफ़ खींचती हैं। मोहल्ले की नाली मे सूअर डुबकियां लगा रहा है , उससे लाख बीमारियाँ हो रही हैं, लेकिन चवन्नी के लिए ऑटो वाले से झगडा कर लेंगे। घर के बाहर लोग कूड़ा फेंकेंगे, लेकिन बजे उसकी नगर पालिका मे शिकायत करने के कूड़ा फेंकने वाले से फौजदारी पे उतर आएंगे। ख़ुद ही ट्रेन मे आग लगायेंगे और मारेंगे मुसलमानों को। ख़ुद ही अपने धर्मगुरु की हत्या करेंगे और इज्ज़त लूटेंगे इसाई महिलाओं की। गजब के लोग हैं। फ़िर कहेंगे कि देश से प्यार है। बिहार से दिल्ली मे लाकर १२-१२ साल की लड़कियों को १०-१० हजार लेकर घरों मे काम करने को सप्लाई करेंगे, और कहेंगे कि हम आजाद हैं। आजाद!!! माई फुट!!
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