Tuesday, July 27, 2010

जाति क्यों नहीं जाती-एक बहस

Rahul Pandey किसी भी जाति की जरूरत ही क्यो है? जाति व्यवस्था ही क्यो है?

May 31 at 12:55pm · ·

  • 50 of 58
    • Rahul Pandey योगेश जी, प्रवीण तोगडिया, विनय कटियार, अटल बिहारी वाजपेयी, लालक्रिष्ण आडवानी, सिंघल, मुरली मनोहर जोशी, नरेंद्र मोदी आदि आदि के बारे मे तो लिखना भूल गये...:)
      May 31 at 5:16pm · ·
    • Rahul Pandey साथ मे खाकी हाफ़ पैंटिये भी तो...धर्म की लाठी इन्होने ही ले रखी है
      May 31 at 5:29pm · ·
    • Yogesh Sharma Mr Padey read and understand carefully these names did not use caste but tried to use religion but failed because Hindus are not Hindus first but they have caste love first. The names which I mentioned earlier were successful in getting caste credit cash card. Religion has been used in a much better way by so called secular groups.
      May 31 at 5:45pm · ·
    • Rahul Pandey मै दोनो की ही बात कर रहा हू योगेश जी
      May 31 at 5:50pm · ·
    • Raju Ramgarhia जाति और धर्म की कोई जरूरत नहीं है। हां वो अलग बात है कि इस देश के नेताओं को इसकी ज्‍यादा जरूरत है। एक दूसरे को लडाने के लिए, कुर्सी हासिल करने के लिए। नहीं तो इन बेचारों की दुकान बंद हो जायेगी।
      May 31 at 9:41pm · ·
    • Radhe Shyam Jha jaati jaati wo kare, jiski punjee kewal pakhand, Main kya jaanu jaati, jaati hain mere bhujdand. Upar seer pe kanak chhatra, bheetar kale ke kaale. Sharmate hain nahee jagat me, jaati jaati karane wale.
      June 1 at 9:44am · ·
    • Krishna G Misra
      जाति और वंश केवल उनके लिए ही महत्व रखती है जो महानता का आदर्श बनने के लिए तत्पर हैं. परिवार एक दिव्य संस्था है, इसका भी ब्रांड या महानता होती है. बाज़ार के लोग, जहाँ लोग मंडी में अपने को बेचते हैं, वहां इसका महत्व नहीं है. बहुत वर्ष पहिले य...ह सोचा गया था, कि वंश की क्रीर्ति हो, किन्तु आज परिवार बिखरते जा रहे हैं. जिनके वंश क़ी कीर्ति है, वे आज भी श्रेष्ठ हैं. वंश का दुरूपयोग नहीं होना चाहिए और इसका उद्योग या दलित या पिछड़ापन से नहीं जोड़ना चाहिए. क्या बाल्मीक को दलित कहा जा सकता है? क्या चन्द्र गुप्त मौर्य या कबीर महान दलित हैं? वंश का बाजारू या सत्ता के लिए दुरूपयोग, बुरा है. See More
      June 1 at 10:24am · ·
    • Deepak Nenwani
      prachiin bharat ki vyavstha mein bhee jatiya thee parantu kisi ka ab jaisa durupyog nahin dekha gaya. sab pana kaam karte the aur us se santusht the. koi kisii doosre ke kaam mein dakahal nahin karta thaa. aaj irshya ke aur pakhand ke daur ...mein jaati vyavstha ke maayne hi badal gaye hain. Itihaas mein dekhiye .. Sri Ram ne Shabri ke ber kyon khaaye? Apne Raam raaj mein Ek Dhobi ki baat ko bhee unhone ek Mantri jaisa mahtv diya ..yeh jaankar bhee aane wala yug unse us nirnay ko lekar unse sawal karega...aise mein kisi jaati ko neech yaa uchh kahna bhartiy parampara ka apmaan hii hai. Mishra ji ki baat se main poorn roop se sehmat hoon, kyonki JIs CLASSLESS Society ki baat aksar hotii hai wo sirf kitaabo mein hotii hai , haqeeqat mein nahin...SABSE BADI BAAT TO YEH HAI KI CHAHE DUNIA MEIN SAARI CLASSESS AUR CASTE KHATAM HO JAAYE LEKIN AMEER GAREEB , GORE KAALE ... CHHOTE BADE KAA CLASS KABHEE KHATM NAHIN HOGA..YEH SHAYAD AAP BHEE JAANTE HAI. Behtari yahi hai ham is kshetr mein kaam karein..kyonki Bhart bhee ek vansh hai aur Bhartiy hona bhee ek jaati hai..See More
      June 1 at 7:07pm · ·
    • Manu Dikshit जाति - प्रजाति , अस्तित्व की पहचान से जुड़े शब्द है, हर जीव, समुदाय के अस्तित्व का वातावरण पर प्रभाव है, अस्तित्व की पहचान के साथ गुण दोष, कर्म , स्वभाव, आदि जुड़े है, ये व्यवस्था से अधिक नैसर्गिक्ता है, .......... उपयोग दुरुपयोग ये विवेक के प्रश्न है , हम किसे महत्व देते है, और उसका उपयोग कैसे करते है ?
      June 2 at 12:15am · ·
    • Rahul Pandey मनु जी, मनुष्य का अस्तित्व मनुष्य होने से है या ब्राम्हण, ठाकुर, अहिर, हिंदू, मुसलमान होने से?
      June 2 at 9:17am · ·
    • Krishna G Misra
      संगठन के प्रतिनिधि के चार माध्यम हैं. १. वंश-गत २. मनोनीत ३. बहुमत ४. प्रतिस्प्रधा
      भारतीयों में वंश-गत को श्रेष्ठ कहा है, वही राजा बन ने योग्य है. क्योंकि यह एक व्यक्ति को उसके तात्कालिक रूप में ही नहीं, बल्कि उनके वंश की कीर्ति, चरित्र और ...एक संस्था की तरह जानता है. परिवार के आदर्श और संस्कार उसे बाँधे रहते हैं. दूसरा दर्जा उनका है, जो मनोनीत या वे लोग जो ज्ञान या कला में श्रेष्ठ हैं, किन्तु उनका वंश-गत चरित्र की परीक्षा नहीं हुयी है और न ही वे प्रतिस्प्रधा या बहुमत से ही सिद्ध हैं, वे पुरोहित या सलाहकार के रूप में उपयुक्त होते हैं. वे कभी दंड देने या न्याय के उपकरण नहीं हैं. बहुमत से चयनित हुए लोग, बाज़ार में श्रेष्ट हैं और जबकि वे सर्व मान्य नहीं होते, फिर भी स्वार्थ के बल पर, लोग जुड़ते हैं. और विरोधी के लिए उनका द्वेष उनकी दृष्टिकोण को कुंठित करता है. असुरक्षा की भावना के कारण वे, भय भीत रहते हैं. प्रतिस्प्रधा केवल दक्षता सिद्ध करती है, और एक कर्मी या काम करने वाले को उस कार्य में दक्ष होना चाहिए. नौकरी प्राप्त करने के लिए, प्रतिस्प्रधा में आना जरूरी है.
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      June 2 at 11:41am · ·
    • Krishna G Misra
      राहुल जी, मनुष्यों का संगठन नहीं होता. जो कमजोर या असुरक्षित हैं या जिनका चरित्र परिभाषित नहीं है, केवल वे ही बलशाली संगठन का निर्माण करते हैं. भारतीय भी कभी मनुष्य हुआ करते थे, और उनका एक चरित्र होता था. किन्तु आज मनुष्य बनना संभव नहीं ह...ै, और वे परिचय के लिए किसी न किसी संगठन पर निर्भर हैं. हर संगठन, किसी बहरी को अन्दर आने ही नहीं देता, इसलिए, वंश या परिवार का संगठन ही सही. यह भी एक संस्था है. वंश की कीर्ति कभी कम नहीं होती, इसका लाभ और सुरक्षा मिलती है. पिता और पुत्र के बीच का सम्बन्ध क्या वंश नहीं है? भारतीय होना, बाभन/ ठाकुर या डाक्टर होना या पोलिस में होना बी संगठन हैं, किन्तु वंश एक महत्वपूर्ण संस्था है.
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      June 2 at 11:53am · ·
    • Krishna G Misra manu dixit : the organization and management are not natural but for identity of defense. These must be defined and standardized.
      June 2 at 2:32pm · ·
    • Swami Chidambaranand jaati kya har us vyavastha ki zaroorat hai jiski shashtro me charcha hai,par logo ne uska galat upayog kiya.saval to kisi bhi baat par uthaya ja sakta hai....neta ki kya zaroorat hai?rajneeti ki kya zaroorat?
      June 2 at 4:37pm · ·
    • Deepak Nenwani Mishra jee aur manu jii ki baat tark sangat hai..!!
      June 3 at 1:55am · ·
    • Manu Dikshit मनुष्य ही हिन्दू , इसाई आदि हुए / होते है, और होना अस्तित्व है,
      June 3 at 2:44am · ·
    • Jaya Varma क्या होना अस्तित्व है मनु जी...मनुष्य होना या हिंदू या इसाई होना?
      June 3 at 12:52pm · ·
    • Manu Dikshit दोनो का होना साथ साथ हो सकता है, दोनो ही अस्तित्व है, और भी काफ़ी कुछ आपके साथ अस्तित्व में जुड़े सकते है और होते ही है, ।
      June 3 at 1:09pm · ·
    • Jaya Varma agar aap kisi aur jaati me shaadi karte hain to kya aap wahi rehte hain jo the ya badal jaate hain......agar badalte hain to iska matlab kya aapka astitva bhi badal gaya???mere khayal se astitva ka matlab hai aapke dimaag aapki soch se....kisi ke marne k baad koi ye nahi kehta ki ek brahman mar gaya ya ek sikh. isaai, musalman mara...log bas yahi kehte hain ki ek achha insaan ya ek bura insaan mar gaya....aur yahi to astitva hai...jo hamare marne k baad bhi logo k dil aur dimaag me zinda reh jata hai....
      June 3 at 3:04pm · ·
    • Krishna G Misra मैंने वंश की कीर्ति की बात की है. शादी तो वंश के वृद्दि का एक माध्यम है. शादी से से वंश और परिवार की संस्था बनती है. यदि शादी स्थिर नहीं है, और आदमी और औरत, एक पशु की तरह वासना की पूर्ति द्वारा बच्चे पैदा करते हैं, तो उन्हें, मनुष्य कैसे कहेंगे. शादी एक अनुसन्धान का विषय है, और जो सही जीवन साथी का चुनाव नहीं कर सकते, वे बाजारू या वैश्य-वैश्या ही हैं. जाति ही केवल शादी का आधार नहीं होता. लेकिन शादी जाती का आधार बनता है.
      June 3 at 5:36pm · ·
    • Krishna G Misra हमारी चर्चा, संगठन और उसके पहिचान की आवश्यकता को लेकर है, मनुष्य या अध्यात्मिक अवस्था नहीं. यह व्यवहार में, परिवार या जन्म पर आधारित जाती के कीर्ति की उपयोगिता या दुरूपयोग को ले कर है.
      June 3 at 5:41pm · ·
    • Krishna G Misra
      जाती या वंश भी एक प्रतीक ही रह गए हैं . परिवार की परम्पराएँ भी नहीं रहीं . भारतीय भी प्रतीक ही रह गया है, क्योंकि कोई नहीं जानता की भारतीय होना एक कीर्ति या अपकीर्ति है. ब्रिटेन के दूतावास के सामने लम्बी लाइन यही सिद्ध करती... है की विदेश का प्यार और त्याग क्या है. जब तक संगठन के निर्माण के लिए संकल्पित लोग नहीं तैयार होंगे, वह संगठन समाप्त हो जायगा. आज ब्रह्मण होना कोई महत्व नहीं रखता क्योंकि वह सामाजिके स्तर और परंपरा हमारे मूर्ख पंडितों कुछ पैसों के लालच में नष्ट कर दी. समाज में उनका स्थान उनके ही मूर्खता से नष्ट हुआ. प्रतीक और अतीत की याद में आंसू बहाने से क्या फायदा. जाति, वंश, समाज, व्यवसाय और देश का गौरव नहीं रह जायगा. यह देश पेप्सी और कोक पीने वालों का देश है, यही इसकी परंपरा है. भ्रस्ताचार और शासन के दुरूपयोग कने वालों की जाति को जान लें. गांधीवादी होना कुछ समय बाद एक गाली जैसे हो जायगा, क्योंकि प्रतीक को बुरा भला कह सकते हैं, इन दुष्टों और अपने को नहीं!
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      June 3 at 6:16pm · ·
    • Jaya Varma jeevan saathi k chunaav ko lekar to baat hui hi nahi...aur yaha baat sthir shaadi ki hi ho rahi hai....asthir shaadi ki baat karne wao k paas itna waqt aur zarurat nahi hoti ki wo charcha karein in vishayon par....mere khayal se yaha par log poori baat padhne aur sochne se pehe hi apni soch zaahir karne ki pravritti rakhte hain....kyoki charcha kaha se uthti hai aur kaha le jayi jati hai iska kuchh pata nahi....
      June 3 at 7:48pm · ·
    • Rahul Pandey एक ही मनुष्य के इतने सारे भटकाव!!!! सवाल अहम बनता जा रहा है, मनु जी, क्रिष्णा जी का कहना सही है, आप चीजो को आध्यात्मिकता की तरफ़ लेकर जा रहे हैं....इसमे मेरी भी गलती है, मैं भी उसी तरफ़ झुकता गया, जया जी का सवाल अहम है, उसपर विशेष ध्यान देने की जरूरत है, परिवार व्यव्स्था या जाति व्यवस्था उसका जवाब नही, समाज बहुत तेज़ी से बदल रहा है...
      June 3 at 11:36pm · ·
    • Rahul Pandey क्रिश्णा जी...वसुधैव कुटुंबकम...तो फ़िर एक जाति विशेष के परिवार की परिकल्पना क्यो?
      June 4 at 12:25am · ·
    • Manu Dikshit बदलाव वक्त लेते है, और वो लेंगे, किन्तु बदलाव के कदम बहुत दृढ़ होते है, और जब एसे बदलाव की बात हो जहां कर्ता और प्रभावित होने वाले वही लोग हो और वो भी एक बहुत बड़ी संख्या में तो फ़िर वो बात सहज ही कही जा सकेगी या करी जा सकेगी एसा सोचना कठिन है। प्रश्न का हल, महत्वपूर्ण होने से अधिक उसके अपने स्वभाव पर निर्भर करता है,। यहां पर सिर्फ़ इतना साफ़ है कि अस्तित्व और व्यक्तिगत राय दो अलग और स्वतंत्र बाते है ।
      June 4 at 1:43am · ·
    • Yogesh Sharma Put this question to sons of quotas and separatists.
      June 4 at 7:35am · ·
    • Krishna G Misra
      वसुधैव कुटुम्बकम का अर्थ है, पृथ्वी ही सभी प्राणियों की एक मात्र माँ है. वसुधा = पृथ्वी, एव = ही, कूट = एक मात्र, अम्बा = माँ. लेकिन प्राणियों में भिन्नता होती है. नीम और आम और इमली यद्यपि देखने में वृक्ष हैं, लेकिन उनका स्वभाव अलग अलग... है. परिवार, जाति या वंश की संस्था उस स्वभाव की रक्षा का एक साधन है. शिक्षा, संस्कार, सुरक्षा, सामाजिक प्रतिष्ठा, संपर्क, सम्मान, त्याग और प्रेम मिल कर ही स्वभाव की रक्षा कर पाते हैं. इस लिए, भारत में, जहाँ परिवार टूट रहे है, देश टूट रहा है, व्यवसाय टूट रहे हैं, उनको जोड़ने के लिए, संगठन की पहिचान होना बुरा नहीं है. मैं इन प्रतीक के दुरूपयोग की बात नहीं करता, मैं केवल पहिचान की बात करता हूँ.
      अलगाव का कारण पहिचान नहीं है, बल्कि उनके संगठन की कीर्ति का नष्ट होना है. आज पंडितों को कोई नहीं पूंछता क्योंकि वे अपने कार्य को ही नहीं समझ सके. कबीर, तुलसी, नानक, मीरा, को इन व्यवसायी पंडितों ने अच्छे दृष्टि से नहीं देखा. मुसलमान इस देश के शासक थे, और उनके क्रूरता, विलासिता और बल के दुरूपयोग के कारण आज उनकी यह स्थिति है. उनका वंश ही लज्जित है. आज भी पोलिस या वकील को भी किराये पर कोई मकान नहीं देना चाहता. ये लोग अपनी करनी से अस्प्रश्य हैं. इस लिए, मेरा, कहना है कि सभी संगठनो को अपनी अछि पहिचान बनानी चाहिए, और यही पृथ्वी माँ के पुत्र और पुत्रियों का कर्त्तव्य है.
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      June 4 at 10:19am · ·
    • Krishna G Misra
      Yogesh ji, ...सरकार और देश और समाज इन सबका आदर्श अलग अलग है. कानून के दुरूपयोग कि सभावना अधिक होती है, इस लिए, लिखित कानून गंदे पानी की तरह बीमारी ही फैलाते हैं. कोटा या रिजर्वेशन ने ही समाज को बँटा था. आज फिर वही हो रहा है.
      हिंदुस्तान उ...नी लीवर, और वाशिंग मशीन के निर्माता भी एक धोबी है, जिसमें कपडे धोने के गुण हैं. क्या उनके कर्मचारी एक दिन, अपने को पिछड़ा घोषित कर, कोटा की मांग करेंगे? भारत के संपेरे, अब सांप का नाच नहीं दिखाते, और बे रोजगार है. जबकि, सांप के विष का व्यवसाय औषधि निर्माण में श्रेष्ट है. क्यों नहीं संपेरे यह काम कर सके? पंडित जो शिक्षा के काम के माहिर थे, और समाज में उनकी प्रतिष्ट थी, वह क्यों गिर गयी? पोलिस और वकील और कोर्ट -कचहरी का नाम बदनाम क्यों हुआ?
      काम कोई भी बुरा नहीं होता किन्तु जब लोग उसके महत्व को नहीं समझते तो, वही अस्प्रश्य कह लाते हैं. हमारे देश में, काम को ज्ञान से नहीं जोड़ा, इसलिए, काम की असुरक्षा हो गयी.
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      June 4 at 11:24am · ·
    • Jaya Varma
      krishna ji....vasudhaiv kutumbkam ka kya arth likh diyaa aapne?????are itna to google pe bhi mil jayega aur yaad karenge to bachpan me sanskrit ki teacher ke shabd goonjenge kaan me vasudhaiv kutumbkam ka matlab poori dharti (prithvi) hi ek... parivar hai...bataiye do shabdo me saari jaati paati dharm ki deewarein dhaha di gayi aur hm log jaati ka dhol peet rahe hain....iska matlab jab ye vasudhaiv kutumbkam ki soch rachi gayi hogi tab k log ham logo se kahi zyada advanced rahe honge...hm log bahut pichhde hain....aur waise bhi ek maan ke sare bachche uske liye ek hi hain.... See More
      June 4 at 12:05pm · ·
    • Krishna G Misra अर्थ इतना आसान है, फिर भी अकल नहीं, इसे समझ पाने की. मित्र, वह अक्ल कहाँ बिकती है, जहाँ से डाउन - लोड कर लिया जाय. बुद्धिहीन लोगों को गूगल और प्राइमरी के संस्कृत का पाठ भी सुधार नहीं सकता. इस लिए, मूर्ख के लिए ही व्यवस्था और संगठन बनते हैं. खुश रहो, और चर्चा को समाप्त करो.
      June 4 at 12:23pm · ·
    • Jaya Varma
      अर्थ इतना आसान है, फिर भी अकल नहीं, इसे समझ पाने की. मित्र, वह अक्ल कहाँ बिकती है, जहाँ से डाउन - लोड कर लिया जाय. बुद्धिहीन लोगों को गूगल और प्राइमरी के संस्कृत का पाठ भी सुधार नहीं सकता. इस लिए, मूर्ख के लिए ही व्यवस्था और संगठन बनते हैं.... खुश रहो, और चर्चा को समाप्त करो??????????!!!!!!!!!!waaaahhhh!!!!!!!!!!!!!!!!!
      meri bhi yahi raaye hai
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      June 4 at 12:24pm · ·
    • Jaya Varma yahi brahmanwaad hai khud ko sarvochch aur ati budhhiman samajhna...joki foot foot k nikal raha hai ha ha ha
      June 4 at 12:26pm · ·
    • Jaya Varma जाति जरूरी है। सब एक बराबर हो जाएंगे तो गाली किसे दोगे। श्रेष्ठता की जन्मावली कैसे बनाओगे, ईश्वर के करीब कैसे माने जाओगे। जुल्म का लाइसेंस कैसे लोगे। जरूरी है जाति, बनाये रखने के लिए शोषण आधारित व्यवस्था।
      June 4 at 12:31pm · ·
    • Jaya Varma सदियों पुरानी मुर्दा व्यवस्था है, जिसे लोग अभी भी ढो रहे हैं।
      June 4 at 12:31pm · ·
    • Jaya Varma
      संगठित धर्म भी नितान्त ग़ैरज़रूरी है। जितनी जल्दी इनकी इति हो, उतना ही बेहतर है।
      jaati jaati wo kare, jiski punjee kewal pakhand, Main kya jaanu jaati, jaati hain mere bhujdand. Upar seer pe kanak chhatra, bheetar kale ke kaale. Sharmate hain ...nahee jagat me, jaati jaati karane wale. See More
      June 4 at 12:33pm · ·
    • Jaya Varma upar ki ye saari baatein kehne waale shaayad isiliye sar patak patak k mar gaye kyuki unhe bhi samajh aa gaya tha tha ki mehnat kin logo pe karein.....:(
      June 4 at 12:35pm · ·
    • Sachin Shrivastava
      http://mohallalive.com/2010/06/04/cut-tongue-after-abduction/ .....दलित की जीभ काट ली
      गांजबड़ (पानीपत)। यह घटना 2010 में हुई है और घटना की जगह दिल्ली से डेढ़ सौ किलोमीटर दूर भी नहीं है। यह घटना एक दलित सरकारी कर्मचारी के साथ हुई है। जिस राज्...य में यह घटना हुई है, वहां पहले मेहराणा, महम, दुलीना, झझ्जर, सालवान, फरमाना (रोहतक), गोहाना और मिर्चपुर जैसी दर्जनों घटनाएं हुई हैं। और सैकड़ों घटनाएं ऐसी हैं जो दर्ज ही नहीं की गयीं।See More
      June 4 at 2:31pm · ·
    • Rahul Pandey ‎"मूर्ख के लिए ही व्यवस्था और संगठन बनते हैं."
      krishna gi, fir vansh, pariwar, shadi sanstha, jaati, dharm ki vakalat kyo?
      June 4 at 3:27pm · ·
    • Ranjeet Jha rahul jee, blood sabhi ke lal hi hota hai phir usme alag alag groop kyun.........aajkal marcket me dher sare mango milta hai lekin alag alag nam kyun.....yaha tak ki roz subah suraj nikalta hai aur sham me ast hota hai phir per day ka nam alag kyun....kya iska zabab hai aapke pas? मनुष्य ही हिन्दू , इसाई आदि हुए / होते है, और होना अस्तित्व है, mai manu jee ki bat se sahmat hun.......
      June 6 at 8:21pm · ·
    • Rahul Pandey तर्क का जवाब होता है झा साहब, कुतर्क का नही
      June 7 at 12:50am · ·
    • Prem Ranjan haan mujhe jaati jarurat hai.lekin wo kewal manvta ka .rahul ji aapne bilkul sahi kaha ki jaati ki jarurat nahi honi chahiye
      June 7 at 5:47pm · ·
    • Ranjeet Jha rahuljee, mai bhi to yahi kah raha hun, तर्क ki bat karie sochiye ki yaha se aage hum kaise vikas kare.. aur aage ki soche. na ki कुतर्क humare purvaz ne ye galti ki hum pichhe ho gaye...........
      June 8 at 8:27pm · ·
    • Rahul Pandey पता नही झा साहब, आपने लगता है ठीक से इतिहास नही पढा, इतिहास गवाह है कि भविष्य हमेशा इतिहास पर ही बना है, इतिहास की गल्तियों से सबक लेकर ही एक सर्व समाज की स्थापना की जा सकती है.
      June 8 at 11:54pm · ·
    • Ranjeet Jha Rahul jee,इतिहास hum nahi badal sakte...aur kisi adhikar bhi nahi hai..humare bus me sirf भविष्य hai..use badalne ka har kisi adhikar hai..yeh kyu nahi samazte aap
      June 9 at 12:21am · ·
    • Rahul Pandey पहले सबक तो लीजिये झा साहब, पूर्वजों की गलती पर शर्म तो कीजिये, शर्म ना सही, पश्चाताप तो कीजिये, समाज अपने आप सुधरेगा, सबका भविष्य बनेगा...
      June 9 at 12:45am · ·
    • Vandana Singh जाति ही क्यूँ और भी बहुत सी व्यवस्थाएं हैं जो असंतोष का कारण हैं....
      क्या सभी खत्म कर देने चाहियें?????
      कोशिश ये हो कि व्यवस्था अव्यवस्था ना बन सके....
      June 9 at 1:39pm · ·
    • Dolly Khanna caste is not needed.humanity is one only caste is needed
      June 9 at 5:13pm · ·
    • Anand Jha
      Rahul ji ye jatiy bybstha aaj se nahin hai aadi kaal se hai or kitne mahapurus aye isko badlne kuchh kar to nahin paye leking kuchh disturb jarur kar gae.

      samaj ek bhot hi ajib kism ki body hai jismai sbhi barg ka rhana jruri hai nahin to pr...ithbi ka nash ho jaega.
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      June 9 at 8:37pm · ·
    • Anand Jha Viksh ke baare mai sochna achha hai na ki bite hue kal ke baare mai futur ke baren mai soche to sbhi jaat ka viksh hoga
      June 9 at 8:38pm · ·