Friday, January 31, 2014

सबसे बड़ा दुख

सबसे बड़ा दुख वो खाली पेट है
जो रात भर खाली रहा,
और सुबह भी खाली ही है।

सबसे बड़ा दुख वो रोटी है
जो दुकान में सजी धजी बैठी है।

सबसे बड़ा दुख वो बाप है
जो अपने बच्‍चे को नहीं देख सकता।

सबसे बड़ा दुख वो पतंग है
जि‍से काटने की डोर नहीं बनी।

सबसे बड़ा दुख वो रात है
जो बि‍याबान है।

सबसे बड़ा दुख वो दुख है
जो नि‍कलना चाहकर भी
नहीं नि‍कल पाता।


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Monday, January 27, 2014

ओउलेई ओडलेई ओ ऊ....

पता है... मुझे चुप कराना आता है। कभी कभी सोचता हूं कि कहीं ये कि‍सी मर्द का काम तो नहीं.... जिंदगी एक सफर है सुहाना....ओउलेई ओडलेई ओ ऊ....। अचानक ये लगता पूर्णवि‍राम नहीं अच्‍छा लगता ना...पर ये अचानक ही तो लगता है। बहरहाल, एक फोन करना है जरूरी।


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मुझमें क्‍या कमी है...

मुझमें क्‍या कमी है...अगर ये सवाल है तुम्‍हारा तो मेरा जवाब है कि मुझमें एक नहीं, लाखों करोड़ों कमि‍यां हैं। मैं संबंधों को समझने में गलत रहता हूं और नि‍भाने में भी। मुझे नहीं पता कि नाप तौल के कैसे संबंध नि‍भाते हैं। मेरी सबसे बड़ी कमी तो ये कि मैं गलत वक्‍त पर सही बात बोल देता हूं। मैं लापरवाह हूं और दूसरों के काम चुटकि‍यों में और अपने काम सालों में भी नहीं करता। मेरी कमि‍यों पर तो दुनि‍या के सारे कागज अधूरे पड़ेंगे।


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मैं कोई भी पुराना काम नहीं करता

मैं आजकल बीड़ी पीता हूं। जिंदगी में कभी नहीं पी, इसलि‍ए पीता हूं। इतना ही नहीं, दुनि‍या में जो सबसे नया काम होता है, मैं वो करता हूं। मैं कोई भी पुराना काम नहीं करता। यहां तक कि शादी डॉट कॉम पर एक प्रोफाइल को दोबारा रि‍क्‍वेस्‍ट भी नहीं भेजता। मैं सबकुछ नया करता हूं। मैं परेशान हूं यादों से। मैं यादों को याद नहीं करना चाहता, इसलि‍ए नया काम करता हूं। फि‍र भी...


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सुख हो या ना हो, दुख जरूर होता है

पता है...हर चेहरे पर एक याद बसी है। हर चेहरे पर एक दुनि‍या बसी है। खामोश चेहरे जो सपनीले तरीके से बाहर चलती हवा को महसूस करते हैं, कि‍तनी यादें बसी हैं उनमें। वो आंखें, जो पथराई सी है, कि‍तनी खामोशी है उनमें...और कि‍तनी दूरी। यादें हैं कि उन आंखों की पुतलि‍यों को हि‍लने ही नहीं देते। झुर्रियां हों या ना हों, यादें जरूर होती हैं। सुख हो या ना हो, दुख जरूर होता है। 

वो मन में पूरा बाजार लगा देती हैं

हर कोई अपनी यादों से परेशान होता है। यादें हर वक्‍त परेशान करती हैं। उन्‍हें तो बस कहीं भी एक झरोखा चाहि‍ए और वो मन में पूरा बाजार लगा देती हैं। और घेर देती हैं मुझे एक कभी न खत्‍म होने वाले शोर से। शोर ऊपर से, नीचे से, दाएं-बाएं और सामने से, हर जगह से कानों में भरता जाता है। कानों में गर्म तेल पड़ता जाता है। 

चलते तो जाना ही है

ठीक है मैं टूटा। मैं मानता हूं कि मैं बुरी तरह से टूटा और लगातार टूट रहा हूं। दि‍न भर में जि‍तना बनाता हूं, दि‍न के एक पल में वो टूट जाता है और मैं फि‍र से बनाना शुरू कर देता हूं। वैसे टोटल देखो तो मैं बनाने के काम में ज्‍यादा लगा हूं। भले ही मेरा बनाया कि‍सी एक पल में खत्‍म हो जा रहा हो और मैं फि‍र से अपने आपको लुटा पि‍टा एक बि‍याबान सड़क पर खड़ा पाता हूं। ढाल और चढ़ाव से भरी सड़क। जि‍स पर मुझे चलते जाना है, गि‍र गि‍र के...घि‍सट घि‍सट के, पर चलते तो जाना ही है।