Wednesday, August 12, 2009
हर आदमी मे होते हैं दस बीस आदमी...
मुझे शब्द तो याद रहते हैं, लाइने भी याद रहती हैं, लेकिन किसने लिखे, ये नही याद रह पता। इस मामले मे मैं बड़ा कमजोर हूँ। अब जैसे कि यही - "हर आदमी मे होते हैं दस बीस आदमी..." बात सही है और तकरीबन हर मौके की है। अब एकांतवास जैसी चीजें मन को सिर्फ़ एक धोखा सा देने भर को रह गई हैं। लोग इतने ज्यादा हो गए हैं कि हर जगह मिल ही जाते हैं। शब्द बहुत ज्यादा बढे तो नही हैं, लेकिन जितने भी हैं, परेशान करने के लिए काफ़ी रहते हैं। और हर आदमी शब्दों का प्रयोग खूब करता है, मन भरकर करता है। इस पर भी अगर हर आदमी मे दस बीस आदमी हो जायें तो फ़िर तो इन्ही गिने चुने शब्दों की बाढ़ सी आ जाती है। मेरे पास कोई बहुत ज्यादा शब्द नही हैं, लेकिन उन लोगों के शब्दों की संख्या गिन गिन कर खुन्नाया रहता हूँ। मैं मानता हूँ कि मेरे अन्दर मे कुछ और लोग रहते हैं, वो लालची हैं, मौकापरस्त हैं और भी कई अजीब अजीब से लोग हैं। ये लोग वक्त वक्त पे सामने आते रहते हैं। लेकिन आजकाल जो लोग मुझसे मिल रहे हैं, वो तो कमाल के हैं। बैठे ठाले अचानक अध्यात्म की बाते करेंगे और वही बातें करते करते उनका अध्यात्म कैसे ध्न्यात्म (धन ) तक पहुच जाता है, जब तक मेरी समझ मे आता है, वो अपना काम कर चुके होते हैं। ऐसे ही अचानक प्रेम भरी बातें करते करते किस तरह से दुश्मनाई पे पहुच जायेंगे कि लगेगा ही नही अभी अभी कुछ देर पहले प्रेम रस की गंगा बह रही थी। मतलब कोई भी कभी भी अपनी बात पे कायम नही रह सकता। कक्षा एक से लेकर छठीं कक्षा तक मैंने यही पढ़ा कि कैसे आदमी को अपनी कही हुई बातों पे कायम रहना चाहिए। इस खोज मे कि अभी भी वही पढाया जा रहा है, मैंने उन्ही कक्षाओं की किताबें फ़िर से पलटी। अभी भी वही पढाया जा रहा है। तो आख़िर क्या बात है कि हर आदमी मे मुझे एक लम्पट नजर आने लगा है। आखिर वो कौन सी चीजें है जो आदमी को इस कदर बिगाड़ देती हैं कि अच्छा भला बच्चा भी लम्पटपने पर उतर आता है....
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हर आदमी मे होते हैं दस बीस आदमी...
ReplyDeleteजिसे भी देखना हो कई-कई बार देखना !
diary aur shayari dono khoob hai !