Tuesday, August 4, 2009
किस हिंदू ने मस्जिद मे नमाज पढ़ी ?
आए दिन इस तरह की खबरें लोकल अखबारों की सुर्खियाँ बनती रहती हैं की मुसलमान हिन्दुओं के भगवान् के लिए माला पूजा सामग्री बनते हैं, मुसलमान हिन्दुओं के मंदिरों मे पूजा करते हैं और मुसलमान हिन्दुओं के साथ हैं। इस तरह की खबरें, मुझे नही लगता कि हिंदू और मुसलमानों के बीच को मित्र भाव या कोई शत्रु भाव पैदा करती हैं। भारतीय समाज मे, खासकर आधुनिक भारतीय समाज को देखते हुए या कहा जा सकता है कि हिंदू हों या मुसलमान, ये हर तरह से एक ही हैं। पुरातनपंथियों की बेहूदा बातो को दरकिनार कर दें तो हर वक्त ये सब साथ मे ही रहते हैं, खाते पीते हैं। लेकिन ये बहस का मुद्दा नही। असल बहस का मुद्दा तो ये है कि क्या किसी ने ऐसी ख़बर कहीं देखी या पढ़ी कि कोई पंडित किसी मस्जिद मे नमाज अता करता हो? या कोई हिंदू किसी मुसलमान के साथ मस्जिद मे गया हो? या कोई हिंदू मस्जिद मे जाकर वुजू करता हो ? जाहिर है कि ऐसी खबरें आती ही नही हैं। मुस्लमान अगर हिन्दुओं के मन्दिर मे जाकर उनकी पूजा प्रक्रिया मे भाग लेते भी हैं तो सिर्फ़ सामाजिक सुरक्षा को सुनिश्चित करने के लिए। हिंदू बाहुल्य इलाकों मे तो ऐसा ख़ास तौर पर देखने को मिलता है। ये कोई सामाजिक समरसता नही, ये तो मजबूरी है जिसे जबरदस्ती सामाजिक समरसता का मुलम्मा मीडिया, खासतौर से हिन्दी लोकल मीडिया चढा रही है। न जाने ये झूट की ये खाई कब भरेगी। असत्य का अन्धकार कब ख़त्म होगा? या फ़िर इन सबको, खास कर ऐसी ख़बर लिखने वाले पत्रकारों को ' सच का सामना ' मे भेजना चाहिए।
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कारण यह है की :
ReplyDeleteइस्लामिक कानून के अनुसार मुशरीक मस्जिद में कलमा पढ़ लेने और नमाज़ कायम करने से ही मुस्लिम मान लिया जाता है. दरगाहों और मजारों में जियारत करने वाले मुसलमानों से ज्यादा हिन्दू होते हैं. मैं खुद अजमेरशरीफ उर्स, निजामुद्दीन, दरगाह कुतुब सहित कई दरगाहों में जा चुका हूँ, हर जगह हिन्दू भी बढ़ चढ़ कर शिरकत करते दिखे, इसे क्या कहेंगे?
nice
ReplyDeleteab bhai, dargaah ka system mere khyaal se muslimo me moortipooja mana jaata hai, aur yahi karan hai ki hundu wahan jaate rahte hain. mala chadhate hain, agarbatti sulgaate hain. matlab vidhi to wahi unki hinduon wali hi rahti hai. dargaah par jana mere khyaal se un khabaron ko justify nahi karta jo musalmaano ke hindu mandiron me jaane par chapti hain...
ReplyDeleteचिंतनपूर्ण आलेख
ReplyDeleteबढ़िया पोस्ट !
लिखते रहिये !
शुभकामनायें !
कृपया वर्ड वैरिफिकेशन की उबाऊ प्रक्रिया हटा दें !
लगता है कि शुभेच्छा का भी प्रमाण माँगा जा रहा है।
इसकी वजह से प्रतिक्रिया देने में अनावश्यक परेशानी होती है !
तरीका :-
डेशबोर्ड > सेटिंग > कमेंट्स > शो वर्ड वैरिफिकेशन फार कमेंट्स > सेलेक्ट नो > सेव सेटिंग्स
आज की आवाज
nice post.go a head.narayan narayan
ReplyDeleteतस्वीर कुछ हद तक साफ़ करने में आप कामयाब रहे लेकिन सवाल अभी भी वही है की ये सब कब ख़त्म होगा कब लोग धर्मनिरपेक्षता का सहारा लेना छोडेंगे और कब इन्सान की पहचान उसकी इन्सानिअत से होगी.......
ReplyDeleteआपका हमवतन भाई ...गुफरान...अवध पीपुल्स फोरम फैजाबाद,
Sir,
ReplyDeleteMay I request you to please log on to my blog lifemazedar.blogspot.com and read the artice 'कमल और कीचड़' which you may like as the answer to your master piece.
Thank You
Sincerely
Chandar Meher
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Chandar Meher
मुझे आपके इस सुन्दर से ब्लाग को देखने का अवसर मिला, नाम के अनुरूप बहुत ही खूबसूरती के साथ आपने इन्हें प्रस्तुत किया आभार् !!
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