Sunday, August 9, 2009
बहाने बरसात के...
इधर पिछले कई दिनों से बरसात बिल्कुल नही हो रही है। वैसे गाजियाबाद मे कई लोगों को मैंने ये भी कहते सुना की अगर महिलायें खेत मे हल चला लेती, तो हो सकता था कि बरसात हो जाती। हवन वगैरह तो लोगों ने बहुत किए, लेकिन बरसात नही हुई। कुछ दिन पहले गाव होकर आया। शाम के वक्त गाव मे अंडा करी बनवाई थी। अभी भी गाव मे अंडा एक ऐसी वस्तु मानी जाती है जिसे ठेले पे या घर के बाहर कही भी खा सकते हैं, सार्वजनिक तौर पे खा सकते हैं लेकिन अ-सार्वजनिक तौर पर अगर घर मे खाना चाहे तो नही खा सकते। बहरहाल अंडा करी बनी और ट्यूब वेल मे महफ़िल जमाई गई। अभी अंडा करी लेकर मेरी बुआ का लड़का आ ही रहा था कि जोर की बरसात शुरू हो गई। काफ़ी तेज पानी बरस रहा था। मैं उस पानी मे खूब भीगा। खेतों मे जाकर भीगा हालाँकि खेतों मे उगे खर पतवार मेरे पैरों मे खूब गडे लेकिन इतनी सुहानी बरसात मे भीगने का मजा यूँ ही छोड़ा नही जा सकता था। उसके बाद आराम से वापस उसी ट्यूब वेल मे आया और दो दो पैग वोदका के लिए, बुआ का लड़का घर से चुपके से रोटी लेकर आया था जिससे अंडा करी खायी गई। वापस गाजियाबाद आया तो देखा कि यहाँ वही भीषण गर्मी हाहाकार मचाये हुए थी। बरसात तो क्या- बूंदा बंदी का कही कोई नामोनिशान नही था। तबसे अभी तक तकरीबन पन्द्रह दिन बीत गए हैं या शायद उससे भी ज्यादा। गर्मी है कि दिनोदिन लगातार बढती ही जा रही है। इधर सुना था कि जिले को सूखाग्रस्त घोषित किया जा सकता है लेकिन उसके बाद कोई ख़बर नही आई। वैसे भी जिले को सूखाग्रस्त घोषित करने से क्या ठंडक मिल जायेगी जिले को, या फ़िर बरसात के कुछ छींटे आकर गिर पड़ेंगे। बरसात चाहिए.....कैसे भी किसी भी तरह। बहुत जरूरी है। खेत ही नही, अब तो आँखे भी सूखने लगी हैं। न जाने कब बरसात होगी , या फ़िर अगस्त का महीना ऐसे ही सूखे सूखे निकल जाएगा....
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