Sunday, August 9, 2009

ता चढ़ मुल्ला बांग दे....

ईश्वर के अस्तित्व पर काफ़ी बातें हुई और काफ़ी हो रही हैं, उनसे इसका कोई मतलब नही। मुद्दा तो ये है कि ये पूरी तरह से मान लिया गया है कि ईश्वर एक मूर्त प्राणी है, उसे सब कुछ दिखाई देता है , सुनाई देता है। लेकिन ऐसा पहली बार लगा कि पिछले कुछ दशकों से ईश्वर को थोड़ा कम सुनाई देने लगा है। मतलब अब ईश्वर बूढे हो चले हैं, आँख की नजर का तो पता नही लेकिन कान का हाल बराबर पता चल रहा है। मुहल्ले मे रामायण हो या मस्जिद मे अजान। सब कुछ बाकायदा लाउड स्पीकर पे हो रहा है। अब ये सब लोगों को सुनाने के लिए हो रहा है या ईश्वर को, ये तो लाउड स्पीकर लगाने वाले जाने, बहरहाल, लाउड स्पीकर से एक बात तो साफ़ हो गई है कि ईश्वर अब कान के कच्चे होते जा रहे हैं। वैसे गाव मे मेरे एक नाना भी थे जो थोड़े से कान के कच्चे थे। जो कुछ भी सुनते थे, थोडी देर मे ही उसमे दस प्रतिशत का इजाफा हो जाता था और वो भी ख़ुद उनकी तरफ़ से। जैसे एक बार मामा के लड़के ने उनसे कहा कि ट्यूबवेल ख़राब हो गई है, मिस्त्री लाना पड़ेगा तब जाकर सिंचाई हो पायेगी। थोडी देर बाद जब मामा आए तो उन्होंने उनसे कहा कि ट्यूब वेल मे आग लग गई है, लड़का गया है बाजार, मिस्त्री को लेकर आग बुझायेगा। बहरहाल ये उनके उम्र की बात थी। लेकिन ईश्वर कुछ इस कदर कान के कच्चे हो गए है कि अभी कुछ दिन पहले मेरे इलाके मे एक युवक की गोली मारकर हत्या कर दी गई। हत्या प्रोपर्टी के चक्कर मे हुई थी लेकिन थोडी देर मे मेरे पास फोन आने लगे कि कही धार्मिक बवाल हो गया है क्या? बूढा गए ईश्वर न जाने कैसी कैसी अफवाह फैलाते हैं। बहरहाल, बात हो रही थी ईश्वर के कान के कच्चे होने पर। आजकल तो मैंने देखा है कि तकरीबन सभी धर्मो के लोगों ने लौद्स्पीकर का प्रयोग करना शुरू कर दिया है। सब चाहते हैं कि उन्ही की आवाज ईश्वर सुने। इसलिए वोल्यूम भी हाई करके रखते हैं। खासतौर पर सुबह के टाइम, जब गजब की नींद आती है तो पता चलता है आवाज लगा रहा है अपने ईश्वर को। अम्मा कहती थीं कि सुबह सुबह उठकर ईश्वर का नाम सुनना चाहिए। लेकिन कौन से ईश्वर का नाम सुनना चाहिए। सुबह सुबह अगर लाउद्स्पीकर की तेज आवाज से नींद टूटे तो गालियाँ किसे देनी चाहिए। या रात मे जब थक हार के घर लौटे हों और तेज़ आवाज मे जागरण हो रहा हो तो क्या करना चाहिए। अम्मा ने बताया ही नही।

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