Tuesday, August 11, 2009

नही सुनता...जाओ !!!

समझ मे नही आता कि वह कौन सा ऐसा पहला काम होगा जो किसी मनुष्य ने दूसरे मनुष्य से करने को कहा होगा? कब किसी से काम कहने की शुरुआत हुई होगी? आखिर किस काम से शुरुआत हुई होगी। आदमी ने आदमी का यूज किस तरह से करना शुरू किया होगा.... मुझे एक दिन मे कम से कम १७ फोन आते हैं। किसी की गली मे पानी भरा हुआ होता है तो किसी के घर बिजली नही आ रही होती है। किसी की जमीन पर किसी ने कब्जा कर लिया होता है तो किसी का घर ही कब्जा हो गया होता है। काम का अंत इतने पे ही नही, कई लोग तो ख़ुद कब्जा करना चाह रहे होते हैं और सीधे मुझे फोन कर देते हैं कि मैं उनके साथ चलूँ और उन्हें कब्जा कराने मे मदद करुँ। गजब के लोग हैं....कुछ तो ऐसे हैं जो आधा आधा घंटा सिर्फ़ इस इन्तजार मे रुके रहते हैं कि अभी मैं आऊंगा तब जाकर वह पहले से निर्धारित किया हुआ काम करेंगे। उतने मे किसी अधिकारी का फोन आ जाता है कि वह कही अतिक्रमण हटवा रहा है और उसे कवरेज़ चाहिए। बड़ी मुसीबत है। किस किस की सुनू और किसे गुनू। अभी पिछले तीन दिन से एक सज्जन मेरे दफ्तर पर आकर जम रहे हैं। उनकी दुकान पर किसी ने कब्जा कर लिया है। मैंने उनसे कहा कि आप एस एस पी के पास जाइए, डी एम के पास अपनी शिकायत लेकर जाइए, लेकिन पीछा ही नही छोड़ रहे हैं। दुकान के साथ साथ वो मुझे तरह तरह के तरीके भी बताते रहते हैं। कमाई के। इन तरीकों को सुन सुनकर मैं परेशान हो गया। आज आए, पहले की ही तरह बैठे और दो लाइन मे दुकान की बात निपटाकर लगे फ़िर से वही कमाई की बात करने। थोडी देर तक झेलने के बाद जब मुझे असुविधा होने लगी तो आज मैंने थोड़ा सा कड़े शब्दों मे बात कर दी। वो नाराज से हो गए और वापस चले गए। मतलब ये कि मैं उनकी सुनु और सुनकर अगर उनका काम न करुँ तो उनकी नाराजगी भी झेलू। गजब के लोग हैं। जान न पहचान, मैं तेरा मेहमान।

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