Sunday, August 23, 2009

कैसे कैसे लोग.....

दुनिया भर की कलाबाजियों से अघाये, नहाये लोगों को सिर्फ़ नाक मे ऊँगली डालकर सबसे ज्यादा मजा आता है दूसरों की खबरों मे। रस ले लेकर उसे नाक से निकले रस मे डुबोकर रसहीन बनने मे रस आता है उनको। कौन क्या कर रहा है और करने से पहले उन्हें ख़ुद को जानने की आदमी इच्छा मे ही डूबकर मर जाने की उनकी चाहत न जाने कम होगी। कम होगी भी या नही, ये तो उनका मन जानता है, या फ़िर उन्हें इंतज़ार है किसी ऐसे क्षण का, जिसमे सारे रस एक मे ही डूबकर आपस मे मिल जायें। सड़क पर चलते हुए उसी सड़क पर बार बार शीशे मे अक्स निहारती वो पागल लड़की नही दिखाई देगी उनको, उसके धूल और मिटटी से सने बालों से कोई परेशानी नही होगी उनकी, और तो और अपने कोयला हो चुके और आदमजात रंग पे भी बोलने वालों से कोई परेशानी नही होगी उनको, अगर होगी तो सिर्फ़ इससे की वो क्यों है, सवाल उसके होने पे है, उसके न होने से उनके सारे सवाल भी मरने लगते हैं। इन अघाए लोगों का कोई इलाज है क्या?

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