Saturday, August 8, 2009

बड़े मियां

एक अरसा हो गया कहानी से गुजरे हुए। सच मे एक अरसा बीत गया। भाषा तो ख़राब हो ही गई, सोच का भी बंटाधार हुआ पड़ा है। विरोधाभास तो इतने हो गए हैं कि पूछना ही बेकार है। कुल मिलकर एक नागफनी का जंगल सा बन गया है, जिधर जाओ उधर ही रहयिश न हो। इतने सरे विरोधाभासों के बीच एक कहानी जन्म ले रही है, लेकिन ये भी उनसे परे नही लगती....


वैसे बड़े मियां उम्र को दरकिनार कर ख़ुद को कभी बूढा नही मानते थे। उनका कहना था की जवानी तो एक अहसास भर है, जब अहसास होना बंद हो जाए तो समझो गई। और अगर ९० साल की उम्र तक अहसास होता रहे तो पठ्ठा ९० साल की उम्र मे जवान है। सुबह सवेरे जब सरकारी हैन्पंप पर अंजोरी मे अपना गुल मजन लेके आते, मुहल्ले के लुख्खों की भीड़ आसपास ही रहती। उनसे बात करने के लिए नही, इसलिए कि अभी मुहल्ले की कुछ एक लड़कियां, औरतें उनके पास आएँगी कि बड़े मियां बासी मुह हैं, सर पे एक फूंक मार देंगे । ये सब बड़े मियां की पकी हुई दाढी और कंधे तक लटकते बालों के कारण होता और बड़े मियां ये सब जानते हुए भी उन्हें कटवाने के बारे मे कभी भी नही सोचते। आख़िर कुछ तो जवानी की अकड़ होनी चाहिए थी। जवानी मे मुहल्ले की शब्बो , शकीला, जाहिरा, शमायला और पंडितानी तक उनके इसी बालों पर मरती थीं। अब भले ही उन सबके चेहरे झुर्रियों से भर गए हों, बड़े मिया ख़ुद को उसी उम्र का समझते थे। बहरहाल सुबह सवेरे बड़े मियां अंजोरी मे गुल मजन लेके विजय की दुकान के सामने वाले इंडिया मार्का हैण्ड पम्प पर पहुचे। अभी ऊँगली गुल मे डुबोई भी नही थी कि कुरैश निस्वां के पास रहने वाली आयशा आ गई। उसके बच्चे को तीन दिन से बुखार था। बोली, बड़े मिया, नजर सी लग गई दिखे है। एकाध फूंक सी मार देते तो ..... बड़े मियां ने इससे आगे और कुछ नही सुना, अंगूठे और कानी ऊँगली से बच्चे का माथा पकड़ा और कुछ बुदबुदाते हुए धीमे धीमे 'फूंक सी' मारने लगे। इधर मुहल्ले के लुख्खों की टिप्पणियां जारी रहीं- बड़े मियां, आराम से !!! उड़ न जाए कहीं... बहरहाल , शमायला गई। तभी बापू बालिका मे पढने वाली अकीला आती दिखी। लुख्खों की बांछे खिल गई। बड़े मिया की भी। आते ही अकीला बोली, बड़े मियां, आज गणित का पेपर है, फूंक मार दो पास होने वाली। बड़े मियां ने एक बार लुख्खों की तरफ़ देखा, फ़िर अकीला से बोले, चल, अपने घर की तरफ़ चल, वही आता हूँ। इस पर अकीला बोली, अभी सीधे स्कूल जा रही हूँ, अभी फूंक मारो। आखिरकार बड़े मियां ने बुदबुदाना शुरू किया। अकीला कभी बड़े मियां के हिलती दाढी देखती तो कभी लुख्खों को। उनमे से रहमान उसे पसंद था लेकिन वो तो दिखाई ही नही दे रहा था। उसने सोचा था कि फूंक के बहाने जायेगी तो रहमान को एक नजर देख लेगी। फ़िर आगे का गणित और रेखागणित, सारे सवाल वो रहमान के हवाले कर देगी। लेकिन ऐसा नही हुआ और बड़े मियां की फूंक बे असर चली गई।
जारी .....

3 comments:

  1. आपका ब्लॉग देखा, बगल मे जो तस्वीरें लगी हैं, बेहद अच्छी लगीं. वैसे इस कहानी का कोई ओर छोर है क्या ?

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  2. अब इन बड़े मियाँ से कौन कौन सी कलाकारी कराने का इरादा है? बढ़िया... और लिखिए...

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  3. abhay ji, tasveeron ke liye dhanyawaad, ek naya camera khareedne ke jugaad me hoon, jaise hi milta hai, aur tasveeren laaunga..
    gullu bhai, kahan se mera blog dekh liya? waise bade miyan jyadatar kishoron wali badmashiyan karenge, kya huajo boodhe ho gaye....ha ha ha

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