Friday, December 1, 2017

एक जज की मौत: कैसे चली नागपुरी फाइल, कैसे बदले बयान?

व्हाट्सएप्प से चली, फेसबुक तक पहुंची जज बृजगोपाल लोया की मौत से जुड़ी एक पोस्ट खासी वायरल हो रही है। एनॉनिमस के पास इसके कई तथ्यों की पुष्टि नहीं है, फिर भी ये कई सवाल खड़े करती है इसलिए एनॉनिमस इसके साथ है। सवाल समझ में आएं तो लाइक करिए, शेयर करिए और कमेंट करिए। न आएं, तो भी अफसोस करने वाली कोई बात नहीं। क्योंकि सवाल तो हैं ही, जब तक जवाब नहीं मिलते। 


  • सोशल मीडिया पर वायरल हुई जज लोया की रहस्यमय मौत की खबर 
  • इस खबर की निगरानी करने और जरूरत के मुताबिक जवाब देने का काम कैबिनेट मंत्री पीयूष गोयल दिया गया 
  • पीयूष गोयल का काम था कि देश के बड़े अखबार या चैनल कारवां स्टोरी को न दिखाने पाएं



जिस दिन कारवां मैगजीन ने सीबीआई की स्पेशल कोर्ट के जज बृजगोपाल लोया की रहस्यमय मौत पर खबर छापी थी, उस दिन भारतीय जनता पार्टी के अंदर पूरी खामोशी थी। जज लोया की रहस्यमय मौत की खबर ने स्पीड पकड़ी और सोशल मीडिया पर वायरल हो गयी। प्रधानमंत्री कार्यालय के सोशल मीडिया संदेशों की निगरानी करने वाले अधिकारियों ने सरकार को बताया कि कैसे भाजपा के अध्यक्ष अमित शाह से जुड़ी ये खबर सोशल मीडिया में ट्रेंडिंग टॉपिक बन चुकी है। शाम तक, कैबिनेट मंत्री पीयूष गोयल को स्थिति की निगरानी करने और जरूरत के मुताबिक जवाब देने का काम सौंप दिया गया। पियूष गोयल का पहला काम यह था कि देश के बड़े अखबार या चैनल कारवां स्टोरी को न तो छापने पाएं और न ही टीवी पर दिखाने पाएं। इस लिहाज से प्रिंट मीडिया के कुछ बड़े मालिकान को फोन किया गया और इसे कवर न करने की ताकीद की गई।




अगले ही दिन कारवां मैगजीन ने जज लोया की रहस्यमय मौत की खबर का दूसरा हिस्सा प्रकाशित किया। उन्होंने खबर के असली सबूत के तौर पर जस्टिस लोया के घरवालों का वीडियो इंटरव्यू जारी किया। इस इंटरव्यू से पियूष गोयल काफी परेशान हो गए। इस बीच जस्टिस लोया की रहस्यमय मौत की जो खबर अब तक अंग्रेजी में थी, वो वेबसाइटों और सोशल मीडिया पर मराठी, हिंदी, मलयालम और बंगाली सहित कई भाषाओं में दिखने लगी। ये काम कारवां मैगजीन ने नहीं किया। ये उन्होंने किया, जिनके दम पर अभी भी हमें सच देखने सुनने पढ़ने और जानने को मिल जाता है। जैसे हिंदी में मुझे यह स्टोरी सबसे पहले जनचौक पर दिखी। इस खबर का हमारी अपनी भाषा में पहुंचना था कि ये बुरी तरह वायरल हो गई। कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक और गुजरात से लेकर गंगासागर तक लोगों की आंखों में सवाल उभरने लगे।




इसी बीच, पीयूष गोयल को एहसास हुआ कि इस मामले में भाजपा की तरफ से काउंटर करने के लिए एक और ठोस प्रयास की जरूरत है। लिहाजा अमित शाह, अरुण जेटली, देवेंद्र फड़नवीस और पीयूष गोयल को मिलाकर 4 सदस्यों की एक टीम बनाई गयी। देवेन्द्र फड़नवीस नागपुर से हैं। ये वही शहर जहां न्यायाधीश लोया का निधन हुआ था। जज बृजगोपाल लोया का इलाज करने वाले दांडे अस्पताल और महाराष्ट्र के वित्तमंत्री सुधीर मुंगेंतिवार से जुड़े मेडिटिरीना हॉस्पिटल को सावधान रहने को बोला गया।

मेडिटिरीना हॉस्पिटल का रिकॉर्ड, इन दोनों जजों की बात और दांडे अस्पताल से मिली ईसीजी रिपोर्ट की फाइल बना ली गई

एक ईसीजी रिपोर्ट दांडे अस्पताल से मिली थी। जज लोया के नागपुर जाने वाले दो जजों जस्टिस कुलकर्णी और न्यायमूर्ति मोडक से कॉन्टैक्ट किया गया। उन्होंने बात करने से इनकार कर दिया। मगर जज लोया के साथ 1 दिसंबर 2014 की रात को होने का दावा वाले दूसरे दो जज ऑन रिकॉर्ड बात करने के लिए मान गए। अब मेडिटिरीना हॉस्पिटल का रिकॉर्ड, इन दोनों जजों की बात और दांडे अस्पताल से मिली ईसीजी रिपोर्ट की फाइल बना ली गई।




अरुण जेटली का मानना था कि ये फाइल सभी बड़े अखबारों और न्यूज चैनलों को दी जाए। खासतौर से उन्हें, जो एंटी सरकार माने जाते हैं। इसलिए चार मीडिया हाउसों को चुना गया। इनमें कुछ तथाकथित 'लेफ्ट लिबरल' मीडिया हाउसेस भी शामिल थे। नागपुरी फाइल इनके हवाले कर दी गई। पीयूष गोयल ने व्यक्तिगत रूप से मीडिया हाउसों को फोन किया ताकि वो एक ऐसी स्टोरी चला सकें जिससे जज बृजगोपाल लोया की रहस्यमय मौत की खबर को बदनाम किया जा सके। सबसे पहले इसे एनडीटीवी ने चलाया। जज लोया की मौत पर पहले ही दो खबर चला चुके एनडीटीवी के लिए आसान निर्णय था। अगला इंडियन एक्सप्रेस था, जो पहले इसे अपने फ्रंट पेज पर ले जाने से हिचकिचा रहा था। लेकिन थोड़े प्रेशर के बाद वो मान गया। अगले दिन ये खबर इंडियन एक्सप्रेस में पहले पेज पर छपी।




एनडीटीवी और इंडियन एक्सप्रेस ने जज लोया की रहस्यमय मौत से जुड़ी कहानी तो सुनाई, मगर दोनों एक जैसी ही थीं। 27 नवंबर की सुबह जब इंडियन एक्सप्रेस के पहले पेज पर यह स्टोरी छपी, तो अरुण जेटली और अमित शाह कोर टीम के अन्य सदस्यों के साथ टेलीफोन पर बात कर रहे थे। तभी उन्हें पता चला कि ईसीजी रिपोर्ट में एक गलती हो गयी है। रिपोर्ट में दिखती तारीख गलत थी। ईसीजी रिपोर्ट दर्ज तारीख 30 नवंबर 2014 थी। जबकि न्यायाधीश लोया को 1 दिसंबर 2014 को अस्पताल ले जाया गया था। अब यह तय किया गया कि इस गलती को छुपाने के लिए अस्पताल 'तकनीकी गड़बड़ी' की बात कहकर अपना स्पष्टीकरण जारी करेगा। अमित शाह व्यक्तिगत रूप से उत्सुक थे कि स्टोरी "इसी हफ्ते खत्म हो जाए"। ठीक उसी लाइन पर काम करते हुए अस्पताल ने दावा किया कि ईसीजी रिपोर्ट में 'तकनीकी गड़बड़' थी।




उधर यह टीम जज लोया के परिवार के साथ लगातार कॉन्टैक्ट में थी और उन्हें कारवां पत्रिका को दिए गये अपने पिछले सबूतों से मुकर जाने के लिए राजी कर रही थी। जज के बेटे अनुज लोया पर मामले से पीछे हटने का काफी दबाव बनाया जा रहा था। दरअसल अनुज ने पहले एक चिट्ठी लिखी थी। इस चिट्ठी में उसने दावा किया था कि अमित शाह का केस सुलझाने के लिए उनके पिता को सौ करोड़ रुपये की रिश्वत ऑफर हुई थी। ये रिश्वत किसी और ने नहीं, उस वक्त के चीफ जस्टिस मोहित शाह ने उन्हें ऑफर की थी। इस मामले का हवाला देते हुए परिवार के खिलाफ होने वाले किसी मानहानि के मुकदमे के असर को बताया गया था। और ये भी समझाया गया था कि कैसे उनका पूरा भविष्य दांव पर है। अनुज लोया काफी डर गए थे। और ऐसा माना जा रहा था कि वो जल्द ही मामले से वापसी की बात उठाएंगे।

  • डॉक्टर बहन अनुराधा बियानी ने अपने भाई की मौत सवाल उठाया था
  • उन्हें टीवी पर भी आने के लिए कहा जा रहा है 


जज बृजगोपाल लोया की डॉक्टर बहन अनुराधा बियानी ने अपने भाई की मौत सवाल उठाया था। अब उन पर भी दबाव डाला जा रहा है कि वह अपनी कही हुई बात से पलट जाएं। उन्हें टीवी पर भी आने के लिए कहा जा रहा है। हो सकता है कि ऐसा ही हो। बीजेपी की कोर टीम कारवां मैगजीन के मालिकों से भी बातचीत कर रही है। वो इसे वहां से भी हटवाना चाह रहे हैं। आने वाले दिनों में यह भी हो सकता है कि पूर्व चीफ जस्टिस मोहित शाह कारवां और पत्रकार निरंजन टाकले के खिलाफ मानहानि का मुकदमा भी दायर कर सकते हैं।

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