Thursday, March 8, 2018

महिलाओं के लिए मुश्किल

भारत में औरतें काम से बाहर हो रही हैं। देश की कार्यशक्ति का हिस्सा बनने वाली महिलाओं का प्रतिशत पिछले बारह वर्षों में सीधे दस फीसदी नीचे आ गया है। किसी भी लोकतांत्रिक समाज के लिए यह खबर भयंकर बेचैनी पैदा करने वाली होती, लेकिन हमारे यहां तो इस पर बात भी नहीं हो रही है। वर्ल्ड बैंक के आंकड़े बता रहे हैं कि 2005 में 15 साल से ज्यादा उम्र की लगभग 36 फीसदी महिलाएं वेतन या मजदूरी के एवज में कहीं न कहीं काम कर रही थीं। लेकिन 2017 में ऐसी महिलाओं का हिस्सा सिमटकर 25.9 फीसदी पर आ गया। इसका असर देश की कुल श्रमशक्ति में कमी के रूप में देखा जा रहा है। सन 2016 में चीन का प्रति व्यक्ति जीडीपी भारत का 2.4 गुना था, जबकि प्रति कामगार जीडीपी 1.7 गुना दर्ज किया गया। लेकिन तीन दशक पहले चीन उत्पादन से लेकर कमाई तक में भारत से पीछे था। उसकी प्रति व्यक्ति जीडीपी भारत से कम तो थी ही, प्रति कामगार जीडीपी भी भारत से कम थी। वर्ल्ड बैंक के मुताबिक सन 1991 में इन दोनों ही मामलों में चीन का दर्जा भारत से नीचे था। लेकिन चीन की तेज तरक्की के पीछे तकनीकी बढ़त के अलावा खास बात यह देखी गई कि वहां की श्रम शक्ति में महिलाओं की भागीदारी भारत से कहीं ज्यादा है। पिछले साल के आंकड़े के मुताबिक भारत की 25.9 प्रतिशत के मुकाबले चीन की 60.4 प्रतिशत महिलाएं बाहर निकलकर किसी कार्यस्थल पर अपनी सेवाएं दे रही थीं। मामले का दूसरा पहलू यह है कि कुल महिलाओं में कामकाजी महिलाओं का हिस्सा धीमी रफ्तार से ही सही, लेकिन पूरी दुनिया में गिर रहा है, पर इस गिरावट में जितनी तेजी भारत में दर्ज की गई है, उसकी कहीं और कल्पना भी करना मुश्किल है। इसकी वजहों पर जाएं तो हाल का नेशनल फैमिली एंड हेल्थ सर्वे बताता है कि 15 से 19 वर्ष तक की 78.3 फीसद लड़कियों को हम घर से बाहर जाने ही नहीं देते, जबकि 20 से 24 साल की 30.8 प्रतिशत लड़कियों को ही घर से बाहर जाने की इजाजत मिलती है। और यह बाहर निकलना भी प्राय: काम पर जाने के लिए नहीं, बाजार, अस्पताल और आसपास के दर्शनीय स्थलों के दर्शन तक ही सीमित होता है। 1991 में भारत की तीन चौथाई महिलाएं खेत में काम करती थीं। यह हिस्सा अभी 59 फीसद के आसपास आ गया है। उद्योगों और सेवाओं में महिलाओं की उपस्थिति बढ़ी है, लेकिन 2005 के बाद से इस दायरे में भी ठहराव या गिरावट देखी जा रही है। सबसे ज्यादा बुरा हाल मध्यम वर्गीय नौकरियों का है, जिनमें टिक पाना महिलाओं के लिए मुश्किल साबित हो रहा है। सरकार को उद्यमियों से मिलकर इस बारे में कोई रास्ता निकालना चाहिए, वरना सिर्फ मुनाफे की फिक्र महिलाओं के साथ-साथ देश को भी गर्त में ले जाएगी।

today's edit- http://epaper.navbharattimes.com/paper/18-13@13-09@03@2018-1001.html

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