वित्त मंत्री अरुण जेटली कह तो रहे हैं कि हमारे हितों की रक्षा की जाएगी; लेकिन यह बता ही नहीं रहे कि कैसे करेंगे रक्षा? एफडीआरआई बिल में बैंक की हालत के पतली होने की हालत में जिन लोगों की रकम सुरक्षित रखी जाएगी, उनकी लिस्ट बनी है। इस लिस्ट में बैंकों में जिनकी रकम का बीमा नहीं होता, वो पांचवे नंबर पर हैं। सरकार का दावा है कि उनकी रकम खत्म तो नहीं होगी, मगर उनकी रकम को इक्विटी में बदल दिया जाएगा।
कुल मिलाकर ऐसा माना जा रहा है कि बैंक जब नाजुक हालत में होंगे तब इस बिल के तहत वो हमारे जमा पैसे से अपना सारा घाटा पूरा कर लेंगे। और फिर इसी बिल से एक सुरंग और निकल रही है। ये सुरंग सार्वजनिक क्षेत्र के सारे बैंकों के प्राइवेट बाजार में निकल रही है। वैसे हमारी जिस रकम को इक्विटी में बदलकर बचाने का दावा सरकार कर रही है, वो दावा भी तकरीबन खोखला ही है।
जब बैंकों की हालत खराब होगी और हमारी जमा को इक्विटी में बदला जाएगा, तब इक्विटी की भी वैल्यू अपने आप कम हो जाएगी। इसलिए बैंकों में जितना पैसा हमारा जमा होगा, उसकी भी वैल्यू कम हो जाएगी। यानि घाटा होना तय है। इसके अलावा हमें अगर अपना पैसा चाहिए होगा तो इस इक्विटी को निजी कंपनियों को बेचना ही पड़ेगा। और अगर बैंक अपनी इक्विटी निजी कंपनियों को बेचते हैं तो जानते हैं क्या होगा? फिर बैंकों की मालिक निजी कंपनियां होंगी। फिर सारे बैंक प्राइवेट होंगे। यानि कि इस बिल में चाहे कोई सरकारी टीम काम करे या प्राइवेट, होना यही है कि बैंक निजी कंपनियों के हाथ कौड़ियों के मोल बिकने हैं। और इस काम के लिए संसद से भी न तो पूछा जाएगा और न ही बताया जाएगा। सीधे कार्यपालिका ही बैंकों को बेभाव लुटा सकेगी।
Story- Pro. Prabhat Patnayak
जारी
कुल मिलाकर ऐसा माना जा रहा है कि बैंक जब नाजुक हालत में होंगे तब इस बिल के तहत वो हमारे जमा पैसे से अपना सारा घाटा पूरा कर लेंगे। और फिर इसी बिल से एक सुरंग और निकल रही है। ये सुरंग सार्वजनिक क्षेत्र के सारे बैंकों के प्राइवेट बाजार में निकल रही है। वैसे हमारी जिस रकम को इक्विटी में बदलकर बचाने का दावा सरकार कर रही है, वो दावा भी तकरीबन खोखला ही है।
जब बैंकों की हालत खराब होगी और हमारी जमा को इक्विटी में बदला जाएगा, तब इक्विटी की भी वैल्यू अपने आप कम हो जाएगी। इसलिए बैंकों में जितना पैसा हमारा जमा होगा, उसकी भी वैल्यू कम हो जाएगी। यानि घाटा होना तय है। इसके अलावा हमें अगर अपना पैसा चाहिए होगा तो इस इक्विटी को निजी कंपनियों को बेचना ही पड़ेगा। और अगर बैंक अपनी इक्विटी निजी कंपनियों को बेचते हैं तो जानते हैं क्या होगा? फिर बैंकों की मालिक निजी कंपनियां होंगी। फिर सारे बैंक प्राइवेट होंगे। यानि कि इस बिल में चाहे कोई सरकारी टीम काम करे या प्राइवेट, होना यही है कि बैंक निजी कंपनियों के हाथ कौड़ियों के मोल बिकने हैं। और इस काम के लिए संसद से भी न तो पूछा जाएगा और न ही बताया जाएगा। सीधे कार्यपालिका ही बैंकों को बेभाव लुटा सकेगी।
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