Wednesday, December 27, 2017

FRDI Bill: मजा मारें गाजी मियां, धक्का सहें डफाली

वैसे इतना महीन बिल मोदी जी के करामाती और फोटोशॉप से भी तेज दिमाग से नहीं निकला है। दस साल पहले सन दो हजार आठ में जब दुनिया में मंदी आई थी, तब फाइनेंशियल स्टैबिलिटी बोर्ड बना था। ये बिल उसी की सिफारिशों पर बना है। ताकि यह पक्का हो सके कि भविष्य में ऐसे संकटों में जब भी वित्तीय प्रणाली फंसे तो उसके लिए अलग से बजट न रखा जाए। उस वक्त अमेरिका ने भी यही किया था और वहां लोग सबसे ज्यादा तबाह हुए थे। भारत जी-20 देशों में से एक था, जिसने इस बोर्ड की सिफारिशों को स्वीकार किया था। एफआरडीआई विधेयक इसी का नतीजा है।

लेकिन हम जैसे टैक्स देने वालों से मिले पैसे से किसी निजी कंपनी या इंस्टीट्यूट को बचाने और सरकारी इंस्टीट्यूट को बचाने के बीच एक बहुत बड़ा फर्क है। एक में कोई वैधता नहीं है तो दूसरे में वैधता है। असल में सरकार बैंकों को खुद ही इस तरह की जहरीली और नुकसानदेह परिसंपत्तियों से दबने से रोक सकती है, जिससे हम टैक्स देने वालों के पैसे से बैंकों के बचाए जाने का सवाल ही पैदा नहीं होना चाहिए। और निश्चित रूप से जैसा अमेरिका में हुआ, उतने बड़े पैमाने पर तो बिलकुल नहीं पैदा होना चाहिए।

यह आश्चर्य की बात नहीं है कि उस वक्त भी भारत में राष्ट्रीयकृत बैंकों की  ये जहरीली या हानिकारक परिसंपत्तियां इतनी कम थीं कि प्राइवेट सेक्टर के झंडाबरदारों को भी यह मानना पड़ा कि बैंक राष्ट्रीयकरण के कारण भारत बाकी दुनिया की तरह फंसा नहीं था, बल्कि हमारी हालत अच्छी थी। इसलिए, तरक्की के हिमालय पर बैठे पूंजीवादी देशों के इस आइडिया को अपने यहां भारत में अपनाने का विचार बेतुका है।
इस आइडिया में धन्ना सेठों को ढेर सारी ऐसी पूंजी मिल जाएगी जिसे बैंक हमारी जेब से वापस लेंगे। मतलब मजा मारें गाजी मियां, धक्का सहें डफाली। और इकॉनामी और उससे जुड़े मामलों में हमारी मोदी सरकार तो पहले ही कितनी समझदार है, पिछले तीन सालों से हम देख ही रहे हैं। ऐसे में ये नए नए पंडितों के बताए रास्ते पर अंधी होकर चल रही है और न डफाली को देख पा रही है और न ही धक्के को।
Story- Pro. Prabhat Patnayak
जारी

पार्ट- 1- 

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