Tuesday, March 6, 2018

बेफिक्री से स्त्री का बहना विरले ही देख पाते हैं

माया पारीक ने चार साल पहले लव मैरिज की थी। पारसी नेकजद से। पिछले साल अप्रैल में नेकजद हार्ट अटैक से मर गए। माया अब मायके में हैं क्योंकि नेकजद की फैमिली उन्हें वापस नहीं ले रही है। बार बार दोहराती हैं कि जो करना चाहती हैं, कर नहीं पा रही हैं। कहती हैं कि शादी के बाद जैसे-तैसे करके सबको ऑलमोस्ट मना लिया था। मगर अब नहीं मना पा रही हैं। नहीं मना पा रही हैं की बात उन्होंने चिट्ठी में नहीं बताई है, लेकिन अवचेतन के भय वहीं सुने जाते हैं, जहां चुप्पी होती है। जहां से कोई आवाज नहीं आती।

जो भय हमारी चेतना में होते हैं, उनके लिए हम कुछ न कुछ इंतजाम कर लेते हैं। दैहिक और आलमोस्ट मानसिक क्षतियों के लिए हमने कानून बना रखे हैं। जहां कानून नहीं हैं, वहां समाज, जाति और जितने हो सकते हैं, उन नामों के मुहर लगे नियम बना रखे हैं। आए दिन की जरूरत और नई मिलती समझ के साथ सब कुछ बदलते भी रहते हैं। फिर भी स्त्रियों का हाल बिलकुल भी नहीं बदला है तो वजह साफ है, कानून और समाज उनके असल भय तक पहुंच पाने में कामयाब नहीं है। अंदर से स्त्री को कोई छू ही नहीं रहा है। खुद स्त्री भी नहीं।

इस कॉलम के लिए काफी स्त्रियों ने अपनी सहेली की कहानियां भेजीं। कुछ ने बताया कि बंधकर बड़ी हुई उनकी सहेली ससुराल से बंधी तो सबसे पहले सास की पसंद की भिंडी और देवर के पसंद के पराठे बनाने सीखे। बच्चे पैदा किए। लड़की पैदा करने पर ताने झेले, मारपीट भी। बच्चे बड़े किए और अब अकेली है। पति होते हैं, मगर वह न होने के बराबर ही होते हैं। कुछ ने बताया कि उनकी सहेली ने फलां कपड़े पहन लिए तो पति देव पांच दिन तक फुंफकारते रहे। कुछ ने कहा कि वह अपने सहेली को समझाती हैं कि उसे कुछ करना चाहिए, लेकिन किसी ने यह नहीं बताया कि उनकी ये सहेली कौन है? अपने यहां स्त्रियों ने अपने भय से बात करने की कला कुछ इसी तरह से विकसित की है, जिसका अंत निपट अकेलेपन के अंधेरे में खोया हुआ है।

वित्तीय सुरक्षा एक हद तक इस अंधेरे को साफ करने में कामयाब हुई है। पैसा कमाने वाली स्त्रियों में कमोबेश पैसा कमाने वाले पुरुषों जितनी ही बेफिक्री होती है। आखिरी अमेरिकी जनगणना बताती है कि स्त्रियों के पास वहां की कुल संपत्ति का 51 फीसद है। कुछ उन्हें मिलती है तो कुछ वह खुद कमाती हैं। इससे वह खुद को सुरक्षित महसूस करती हैं। अपने यहां जिस उम्र में आकर काफी सारी स्त्रियां अकेली हो जाती हैं, वहां उस उम्र में स्त्रियां जमकर जीना शुरू करती हैं। मगर फिर भी, वैसा जीना भी अवचेतन में बसे उस भय का स्थाई इलाज नहीं कर पा रहा है। अमेरिका की शिकागो और कॅलीफोर्निया यूनिवर्सिटी का एक संयुक्त अध्ययन बताता है कि वहां की लगभग आधी आबादी अवसादी अकेलेपन का शिकार है। 

कामकाजी होने के बावजूद स्त्रियां अवचेतन के भय पर खुलकर बात नहीं करतीं तो सिर्फ इसलिए कि उन्हें भरोसा नहीं है। कामकाजी तो दूर, स्त्री विमर्श और आंदोलनों से जुड़ी कई स्त्रियों ने इस विषय पर चुप्पी साध ली। संपत्ति की जायज मांग उठाएंगी की बात सभी ने बताई, लेकिन अपने घर में यह बात उठाई या नहीं उठाई, यह नहीं बताया। कानून और समाज अभी तक आधी आबादी के लिए जो कुछ कर पाया है, वह कहीं से भी पूरा नहीं है। और फिर पूरा हो भी जाएगा, तो भी यह भय खुलकर बह पाएगा, क्या कहा जा सकता है।

अवचेतन के भय को बहने के लिए भरोसे का ठोस मैदान चाहिए। जब यह मैदान स्त्री के पास होता है तो वह बहती है। बेफिक्री से स्त्री का बहना विरले ही देख पाते हैं। अभी यह मैदान क्यों नहीं है, यह भय खुलकर बाहर क्यों नहीं आ रहा है, माया पारीक के पत्र की आखिरी लाइन इसे अच्छे से समझा देती है। वह कहती हैं,  ‘शादी करके किसी की लाइफ नहीं खराब करना चाहती। इसमें गलती किसी की भी नहीं है, लेकिन टाइम खराब चल रहा है।’

नोट: मैं कोई स्त्री विर्मशकर्ता नहीं। बनना भी नहीं है। स्त्रियों ने जो बताया, और जो नहीं बताया, बस वही लिखा है।

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