Sunday, March 4, 2018

एक और जज का तबादला: अमित शाह को बचाने की कोशिश



सोहराबुद्दीन मामले में आया जज लोया जैसा मोड़, जस्टिस रेवती मोहिते डेरे का क्यों किया गया तबादला? 

गुजरात में हुए सोहराबुद्दीन एनकाउंटर मामले में भी वही मोड़ ला दिया गया है जो जज लोया वाले मामले में कभी लाया गया था। गनीमत बस इतनी है कि इस मोड़ पर आने वाला जज जिंदा खड़ा है, जबकि जज लोया को जिंदा मार दिया गया था। सोहराबुद्दीन मामले की पुनर्विचार अर्जियां अभी तक जस्टिस रेवती मोहिते डेरे सुन रही थीं लेकिन 26 फरवरी से उन्हें जस्टिस एनडब्ल्यू सांबरे के हवाले कर दिया गया है। हालांकि जिम्मेदारियों में तब्दीली नियमित तौर पर होने वाले रोस्टर का हिस्सा है जहां ढेर सारी दूसरी बेंचों को भी बदला जाता है। लेकिन इस मामले में इस लिए लोगों की भौंहें तन गयी हैं क्योंकि सच्चाई ये है कि जस्टिस रेवती मोहिते डेरे पिछले तीन हफ्ते से मामले की सुनवाई कर रही हैं।

बांबे लायर्स एसोसिएशन (बीएलए) ने बांबे हाईकोर्ट की कार्यकारी मुख्य न्यायाधीश वीके ताहिलरमानी को पत्र लिखकर सोहराबुद्दीन एनकाउंटर मामले को सुनवाई के लिए दूसरे जज को देने के फैसले पर पुनर्विचार करने की अपील की है। कार्यकारी मुख्य न्यायाधीश को संबोधित और बीएलए अध्यक्ष अहमद आबदी द्वारा हस्ताक्षरित पत्र में कहा गया है कि “जस्टिस डेरे केस के मामले में सीबीआई के रवैये को लेकर जिस तरह से लगातार उसे फटकार लगा रहीं थीं उससे (तबादले के फैसले को) खासकर साजिश माना रहा है।” जस्टिस रेवती डेरे का सीबीआई के रवैये को लेकर बेहद आलोचनात्मक रुख था। उन्होंने साफ-साफ कहा था कि सीबीआई कोर्ट को सहयोग नहीं कर रही है। उसकी तमाम कमियों के लिए उसे कई बार फटकार भी लगायी थी। उन्होंने सीबीआई और सोहराबुद्दीन के भाई रुबाबुद्दीन की ओर से दायर याचिकाओं का नियमित आधार पर सुनवाई शुरू कर दी थी। इतना ही नहीं पिछले महीने सोहराबुद्दीन मामले में ट्रायल कोर्ट द्वारा मीडिया कवरेज पर लगाए गई पाबंदी को भी हटा दिया था। नई जिम्मेदारी के मुताबिक जस्टिस रेवती डेरे अब जमानत, अग्रिम जमानत, और जमानत से जुड़ी अर्जियों की सुनवाई करेंगी।

बीएलए ने जो पत्र भेजा है, उसके मुताबिक 38 आरोपियों में बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह समेत 15 को ट्रायल कोर्ट ने बरी कर दिया है। सबसे बड़ी अचरज की बात ये है कि 42 गवाहों में 34 अपने बयानों से पलट गए हैं। बीएलए का कहना है कि “इस पृष्ठभूमि में जस्टिस डेरे के एसाइनमेंट को बदला जाना जनता में एक गलत संदेश भेज रहा है। और लोगों का न्यायपालिका की संस्था में विश्वास को भी कमजोर कर रहा है।” बीएलए ने अमित शाह के बरी होने को चुनौती देने के लिए सीबीआई को निर्देश देने संबंधी बांबे हाईकोर्ट में दायर एक पीआईएल को सुनवाई के लिए जस्टिस भूषण गवई की बेंच को दिए जाने पर भी सवाल उठाया है। जस्टिस गवई उन दो जजों में से एक हैं जिसने मीडिया को बताया है कि सीबीआई जज बीएच लोया की मौत में कुछ भी छुपाया नहीं जा रहा है। आपको याद होगा कि जज लोया जो सोहराबुद्दीन मामले की सुनवाई कर रहे थे उनकी 1 दिसंबर को नागपुर में कथित तौर पर दिल का दौरा पड़ने से मौत हो गयी थी। तब वो अपने एक सहयोगी की बेटी की शादी में शामिल होने के लिए वहां गए थे। जज की मौत की जांच के लिए ढेर सारी याचिकाएं दायर की गयी हैं।

इस मामले में बीएलए ने कार्यकारी मुख्य न्यायाधीश से सुधारात्मक कार्रवाई करने की अपील की है। उसने कहा है कि “क्योंकि केवल न्याय नहीं होना चाहिए बल्कि न्याय होते हुए दिखना भी चाहिए।” इस बीच कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने बांबे हाईकोर्ट में सोहराबुद्दीन मामले की सुनवाई करने वाली जस्टिस मोहते डेरे को केस से हटाए जाने के फैसले पर कड़ी प्रतिक्रिया जाहिर की है। पूरी प्रगति पर टिप्पणी करते हुए कांग्रेस चीफ ने मंगलवार को एक ट्वीट के जरिये कहा कि “सोहराबुद्दीन केस ने एक और जज को ले लिया। सीबीआई को चुनौती देने वाली जस्टिस रेवती डेरे को हटा दिया गया है।” उन्होंने पूछा कि “जज जेटी उत्पट ने अमित शाह से सुनवाई में उपस्थित होने के लिए कहा और हटा दिए गए थे। जज लोया ने कठिन सवाल पूछे। वो मर गए। इस बीच हाईकोर्ट ने मौजूदा सूची में बदलाव को रूटीन करार दिया है।

सुनवाई के दौरान 29 जनवरी 2018 को जस्टिस डेरे ने सीबीआई से पूछा था कि वह पुनर्विचार अर्जियों की तेजी से सुनवाई के लिए कोई इच्छा क्यों नहीं प्रकट कर रही है। जैसा कि ट्रायल स्पेशल सीबीआई कोर्ट में नवंबर 2017 से शुरू हो गया था। इस मामले में कुल 42 गवाह थे जिसमें 34 पहले ही पलट गए हैं। 12 फरवरी को सुनवाई के दौरान दो और गवाह पलट गए। इस पर जस्टिस रेवती डेरे ने सीबीआई से पूछा था कि गवाहों की सुरक्षा के लिए वो क्या कर रही है? लाइवलॉ वेबसाइट के हवाले से आयी खबर के मुताबिक जज ने कहा था कि “क्या ये सीबीआई की जिम्मेदारी नहीं बनती है कि वो गवाहों की रक्षा करे जिससे वो आरोपियों के सामने बेखौफ होकर अपना पक्ष रख सकें? इस बात पर विचार करते हुए कि ढेर सारे गवाह स्पेशल सीबीआई कोर्ट के सामने मुकर चुके हैं उन्होंने पूछा था कि क्या आप उन्हें कोई सुरक्षा देने जा रहे हैं? आपकी जिम्मेदारी केवल चार्जशीट भरने से नहीं पूरी हो जाती है। अपने गवाहों की रक्षा करना आपकी जिम्मेदारी है।” इससे आगे जाते हुए जज ने कहा कि “ आप एक मूक दर्शक नहीं हो सकते हैं। मैं उस तरह का सहयोग नहीं पा रही हूं जैसा मुझे सीबीआई की तरफ से मिलना चाहिए था। अगर यही आपका रवैया है तब आप ट्रायल ही क्यों चलवा रहे हैं।”

इस बीच हमने आरोपियों के बरी होने को चुनौती देने वाले सोहराबुद्दीन के भाई रुबाबुद्दीन से बात की। उन्होंने बताया कि उनकी अपने वकील से बात हुई है और केस की अगली जो तारीख लगेगी उस मौके पर वो अपना एतराज जताएंगे। और मामले को जस्टिस मोहिते डेरे के पास ही रहने देने की अपील करेंगे। बताया जा रहा है कि इस तरह के मामलों में अभियोजन पक्ष या फिर याचिकाकर्ता मुख्य न्यायाधीश से अपील कर सकते हैं। खासकर ऐसे मामलों में जिनका बड़ा हिस्सा किसी जज ने सुन लिया हो। ऐसे में जिम्मेदारी को बदलने की जगह बाकी सुनवाई को भी उसके द्वारा ही पूरी किए जाने पर विचार हो सकता है। अंग्रेजी समाचार वेबसाइट स्क्रोल से बातचीत में बांबे हाईकोर्ट के एक वरिष्ठ वकील ने कहा कि जजों का ये एसाइनमेंट रूटीन हो सकता है और उसमें शायद कोई असामान्य बात न हो लेकिन ये दुर्भाग्यपूर्ण है क्योंकि जस्टिस डेरे ने सभी पक्षों की ज्यादातर बहसों की सुनवाई पूरी कर ली थी।

पहले रुबाबुद्दीन का प्रतिनिधित्व कर चुके वकील विजय हीरेमथ ने कहा कि “8 या 10 सप्ताह में जिम्मेदारियों में बदलाव किया जाता है लेकिन इस केस में पिछले तीन हफ्ते से नियमित सुनवाई चल रही है। और बहुत ज्यादा बहसें पूरी हो चुकी हैं।” उन्होंने आगे कहा कि “पूरे मामले की फिर से सुनवाई इसमें शामिल किसी के लिए भी समय की बर्बादी होगी।” वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण ने इस पर कड़ी प्रतिक्रिया जाहिर करते हुए कहा कि हालांकि हाईकोर्ट में रोस्टर में बदलाव कोई असामान्य प्रक्रिया नहीं है। अगर एक जज कोई केस सुन चुका है तब उस केस को सामान्य तौर पर उसे ही भेज दिया जाता है और उसे एक हिस्से की सुनवाई हो चुके मामलों में रखा जाता है। उन्होंने कहा कि अगर इस खास केस को उनके साथ नहीं रखा जाएगा तब ये निश्चित तौर पर एक असामान्य बात होगी और फिर रोस्टर में बदलाव एक गलत मंशा को दर्शाएगी। और खासकर उनकी सीबीआई के रवैये पर की गयी टिप्पणी को देखते हुए इसकी आशंका और बढ़ जाएगी। बांबे हाईकोर्ट के पूर्व जज जस्टिस अभय थिप्से ने कहा कि “....इसमें एक सुधार हो सकता है- दोनों पक्ष चीफ जस्टिस से मिलकर उनसे केस को उसी जज के तहत जारी रखने की अनुमति हासिल कर सकते हैं।” उन्होंने कहा कि आमतौर पर जज खुद इस तरह का निवेदन नहीं करते हैं जब तक कि कोई एक पक्ष इस तरह का सुझाव नहीं देता है।

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