गुजरात में ककरापारा परमाणु विद्युत स्टेशन में 11 मार्च को हुई गंभीर
दुर्घटना के बाद ग्रीनपीस इंडिया ने देश के सभी पुराने भारी दबाव युक्त पानी रिएक्टरों
की स्वतंत्र विशेषज्ञों द्वारा तत्काल जाँच करवाने की मांग की है। दुर्घटना के 72 घंटों के बाद भी, भारतीय परमाणु
नियामक रिसाव की वजह का पता लगाने में असफल रहे हैं।
ग्रीनपीस कैपेंनर
होजेफा मर्चेन्ट ने कहा, “ककरापारा की दुर्घटना संभवतः पुराने पुरजों में खराबी की वजह से हुई है। हमें
चिन्ता है कि इन्हीं कारणों की वजह से दूसरे भारी पानी रिएक्टरों में भी दुर्घटना
घट सकती है। हमें ककरापारा दुर्घटना की सार्वजनिक जांच करनी चाहिए और देश के बाकी
पुराने भारी पानी रिएक्टरों की जाँच भी करनी चाहिए।”
शुक्रवार को, फुकुशिमा त्रासदी
के पांचवे बरसी पर , ककरापारा परमाणु विद्युत स्टेशन के यूनिट 1 में उस समय
एमर्जेंसी घोषित की गयी, जब रिएक्टर शीतलन प्रणाली से रिसाव का पता चला। हालांकि घटना के तुरंत बाद
रिएक्टर को तत्काल बंद कर दिया गया, परमाणु ऊर्जा नियामक बोर्ड (एईआरबी) ने कहा है कि यह
दुर्घटना अंतर्राष्ट्रीय परमाणु इवेंट के पैमाने पर स्तर 1 की दुर्घटना है।
ककरापर यूनिट 1 करीब 20 साल पुराना है और
एक कनेडीयन डिज़ाइन पर
आधारित ‘दबाव युक्त भारी जल रिएक्टर कनाडू’ (कनाडा ड्यूटेरियम यूरेनियम) है। भारत में इसी डिज़ाइन
के करीब सात और रिएक्टर हैं जो 20 साल पुराने हो चुके हैं। इन रिएक्टरों में किसी भी दुर्घटना से इन आठ
रिएक्टरों के करीब 30 किलोमीटर क्षेत्र के आसपास रहने वाले 40 लाख से अधिक लोगों
की जान खतरे में पड़ सकती है।[1].
कनाडू रिएक्टर
जैसे-जैसे पुराने होते हैं, उन्मे दुर्घटना के खतरे भी बढ़ जाते हैं क्योंकि उन हजारों पाइप की, जो ईंधन और भारी
पानी के परिवहन के लिये इस्तेमाल होते हैं, उनकी गुणवत्ता घटने
लगती है। दुर्घटना के खतरे को देखते हुए कनाडू रिएक्टरों को 25 साल बाद बंद कर, पूरी तरह से ‘रीट्यूबिंग’ किया जाना चाहिए।
होजेफा का कहना है, “ककरापर दुर्घटना पर
जारी बयान में परमाणु ऊर्जा नियामक बोर्ड ने कहा है कि रिएक्टर के ‘प्रेशर ट्यूब’, जो ईंधन के बंडल को
रखते हैं, को 2011 में बदला गया लेकिन यह स्पष्ट नहीं है कि सुरक्षा के
मद्देनजर सभी संवेदनशील पुरजों को बदला गया या नहीं। न तो ककरापार के संचालक और न
ही नियामक ने यह खुलासा किया है कि किन पुरजों और ट्यूब में खराबी की वजह से रिसाव
की घटना हुई है। इसलिए ककरापार दुर्घटना और भारत के दूसरे पुराने रिएक्टरों की
तत्काल जाँच करने की जरुरत है।
कनाडू रिएक्टर
डिज़ाइन की विशेष जानकारी रखने वाले ग्रीनपीस कनाडा के कार्यकर्ता शॉन-पैट्रिक
स्टेनशिल ने बताया, “काकरापर घटना ने हमें याद दिलाया है कि भारत के कई भारी पानी रिएक्टर पुराने
हो गये हैं और दुर्घटना के लिहाज से संवेदनशील हैं। पुराने रिएक्टरों के प्रभाव को
अभी अच्छे से नहीं समझा जा सका है - लोगों की सुरक्षा के लिहाज से एहतियाती कदम
उठाने की जरुरत है। सभी बीस साल पुराने भारी पानी रिएक्टर की जाँच होनी चाहिए
जिससे यह तय हो सके कि ककरापर की घटना दूसरे स्टेशनों में नहीं दुहरा पाये। सभी जांच
को सार्वजनिक किया जाना चाहिए और इनकी स्वतंत्र समीक्षा होनी चाहिए।
भारत में फिलहाल 18 दबाव युक्त भारी जल
रिएक्टर में से आठ कनाडू डिजायन के हैं जो बीस साल पुराने हो चुके हैं। चार सबसे
पुराने रिएक्टर रावतभाटा, राजस्थान में और चेन्नई, तमिलनाडू में स्थित हैं। इन सभी आठ जगहों के 30 किलोमीटर के आसपास
करीब 4.16 मिलियन लोग रहते हैं। ककरापरा के 30 किलोमीटर इलाके में भी करीब दस लाख लोग रहते हैं।
Notes to Editors:
2- रिएक्टर जानकारी
एनपीसीआईएल वेबसाइट से इकट्ठा
3- जनसंख्या 2011 की जनगणना से
इकट्ठा
4- ‘रीट्यूबिंग डेटा
एईआरबी वार्षिक रिपोर्ट से संकलित
5- तालिका: वर्तमान
दबाव भारी पानी रिएक्टरों (PHWRs) और खतरे में जनसंख्या
नाम
|
कमीशन की तारीख
|
रिएक्टर प्रकार
और क्षमता
|
उम्र
|
अंतिम retubed
|
30 किलोमीटर की
परिधि के भीतर आबादी
|
केपीसए APS 1
|
6 मई 1993
|
दबावयुक्त भारी
जल रिएक्टर - 220mw
|
22
|
2008- 11
|
काकरापारा गुजरात
960,000
|
KAPS 2
|
1 सितंबर 1995
|
दबावयुक्त भारी
जल रिएक्टर- 220mw
|
20
|
?
|
|
आरएपीसए 1
|
16 दिसंबर 1973
|
दबावयुक्त भारी
जल रिएक्टर- 100mw
|
42
|
2003
|
रावटभाटा
राजस्थान
460,000
|
आरएपीसए 2
|
1 अप्रैल 1981
|
दबावयुक्त भारी
जल रिएक्टर- 200mw
|
35
|
2007
|
|
एमएपीसए 1
|
27 जनवरी 1984
|
दबावयुक्त भारी
जल रिएक्टर- 220mw
|
32
|
2003-06
|
चेन्नई तमिलनाडु
500,000
|
एमएपीसए 2
|
21 मार्च 1986
|
दबावयुक्त भारी
जल रिएक्टर- 220mw
|
29
|
2002-04
|
|
एनएपीसए1
|
1 जनवरी 1991
|
दबावयुक्त भारी
जल रिएक्टर- 220mw
|
25
|
2005-08
|
नरोरा
उत्तरप्रदेश
2,240,000
|
एनएपीसए 2
|
1 जूलाई 1992
|
दबावयुक्त भारी
जल रिएक्टर- 220mw
|
24
|
2007-10
|
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